Mothers Day Poem in Hindi – माँ को समर्पित हिन्दी कवितायेँ

Happy Mothers Day 2020 – हर साल की तरह इस साल भी पूरे विश्व में मातृ दिवस (Mother’s Day) 10 मई यानी रविवार (Sunday) को मनाया जाएगा। मातृ दिवस वर्ष का एक विशेष दिन है जो भारत की सभी माताओं के लिए समर्पित है। यूँ तो मां अपना पूरा जीवन ही बच्चो के लिए समर्पित करती है, लेकिन एक दिन ऐसा भी होता है जो पूरी तरह मां के नाम होता है, जिसे हम ‘मदर्स डे’ ( Mothers Day) या मातृ दिवस के नाम से जानते हैं। यहां हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं कुछ बेहतरीन Mother day Poems । जिन्हें आप शुभकामनाएं देने के लिए शेयर कर सकते है।

प्यारी प्यारी मेरी माँ

प्यारी प्यारी मेरी माँ,
सारे जग से न्यारी माँ।

लोरी रोज सुनाती है,
थपकी दे सुलाती है।

जब उतरे आँगन में धूप,
प्यार से मुझे जगाती है।

देती चीज़ें सारी माँ,
प्यारी प्यारी मेरी माँ।

उंगली पकड़ चलाती है,
सुबह-शाम घुमाती है।

ममता भरे हुए हाथों से,
खाना रोज खिलाती है।

देवी जैसी मेरी माँ,
प्यारी प्यारी मेरी माँ
सारे जग से न्यारी माँ…।।

तेरी बहुत ज़रूरत थी माँ

क्या सीरत क्या सूरत थी,
माँ ममता की मूरत थी।

पाँव छुए और काम बने,
अम्मा एक महूरत थी।

बस्ती भर के दुख सुख में,
एक अहम ज़रूरत थी।

सच कहते हैं माँ हमको,
तेरी बहुत ज़रूरत थी।।

माँ होती है प्यारी प्यारी

मेरी प्यारी माँ तू कितनी प्यारी है,
जग है अंधियारा तू उजियारी है।

शहद से मीठी हैं तेरी बातें,
आशीष तेरा जैसे हो बरसातें।

डांट तेरी है मिर्ची से तीखी,
तुझ बिन ज़िंदगी है कुछ फीकी।

तेरी आंखो में छलकते प्यार के आंसू,
अब मैं तुझसे मिलने को भी तरसूं।

माँ होती है भोरी भारी,
सबसे सुन्दर प्यारी प्यारी।।

माँ को बूढ़ा होता देख रहा हूँ..

चुपके चुपके मन ही मन में, खुद को रोते देख रहा हूँ,
बेबस होके अपनी माँ को बूढ़ा होता देख रहा हूँ।

रचा है बचपन की आँखों में, खिला खिला सा माँ का रूप,
जैसे शीत के मौसम में नरम गरम मखमल सी धूप।

धीरे धीरे सपनों के इस रूप को खोते देख रहा हूँ,
बेबस होके अपनी माँ को बूढ़ा होता देख रहा हूं।

छूट गया है धीरे धीरे
माँ के हाथ का खाना भी,
छीन लिया है वक्त ने उसकी
बातों भरा खजाना भी।

घर की मालकिन को,
घर के कोने में सोते देख रहा हूँ।

चुपके चुपके मन ही मन में, खुद को रोते देख रहा हूँ
बेबस होके अपनी माँ को बूढ़ा होता देख रहा हूँ…।।

माँ की ममता

नौ(9) महीने अपने अंदर रखकर
जाने कैसा एहसास जगाया,
हर दिन हर पल की हलचलों को,
बिन कहे हर किसी से छुपाया।।

कितना दर्द तूने सहा होगा माँ
इसका कुछ अंदाज़ा भी नहीं है,
जब आया मैं इस दुनिया में,
तूने फिर सब भुलाकर मुझे सीने से लगाया।।

जब मैं बड़ा हुआ, तूने चलना सिखाया
जब मैं बाहर निकला, तूने दौड़ना सिखाया,
मैं कहीं पीछे न रह जाऊ, तूने खुद को भी मेरे साथ तपाया,
अब जब मैं आगे निकल आया, क्यों तुझे अपने साथ ना ला पाया।।

खुद गीले में तू सोई, मुझे सूखे में सुलाया
क्यों मेरी हल्की-सी परेशानी में तूने खुद को हर जगह दौड़ाया,
मैं तब भी परेशान था, क्योकि हर जगह तू चाहिए थी,
मै आज भी परेशान हूँ, क्योंकि मैं तेरे लिए कुछ ना कर पाया।।

माँ तुझे नमन है तू मुझे इस दुनिया में लायी
अपनी खून-पसीने की कमाई सब मुझ पर लगायी,
मैं तेरा आधा भी बन जाऊ बस इतनी है दुआ,
तुझे दुनिया की हर ख़ुशी दे जाऊ बस क़ुबूल हो ये दुआ..।।

जीती थी बच्चों की खातिर, माँ की यही कहानी थी..

घुटनो से रेंगते रेंगते, कब पैरों पर खड़ा हुआ,
तेरी ममता की छाव में, ना जाने कब बड़ा हुआ।

काला टीका दूध मलाई, आज भी सब कुछ वैसा हैं
एक मैं ही में हूँ हर जगह, प्यार ये तेरा कैसा हैं।

सीदा-सादा, भोला-भाला, मैं ही सबसे अच्छा हूँ,
कितना भी हो जाऊं बड़ा माँ, मैं आज भी तेरा बच्चा हूँ।

कैसा था नन्हा बचपन वो, माँ की गोद सुहाती थी,
देख देख कर बच्चों को वो, फूली नहीं समाती थी।

ज़रा सी ठोकर लग जाती तो, माँ दौड़ी हुई आती थी,
ज़ख्मों पर जब दवा लगाती, आंसू अपने छुपाती थी।

जब भी कोई ज़िद करते तो, प्यार से वो समझाती थी,
जब जब बच्चे रूठे उससे, माँ उन्हें मनाती थी।

खेल खेलते जब भी कोई, वो भी बच्चा बन जाती थी,
सवाल अगर कोई न आता, टीचर बन के पढ़ाती थी।

सबसे आगे रहें हमेशा, आस सदा ही लगाती थी,
तारीफ़ अगर कोई भी करता, गर्व से वो इतराती थी।

होते अगर ज़रा उदास हम, दोस्त तुरन्त बन जाती थी,
हँसते रोते बीता बचपन, माँ ही तो बस साथी थी।

माँ के मन को समझ न पाये, हम बच्चों की नादानी थी ,
जीती थी बच्चों की खातिर, माँ की यही कहानी थी,
जीती थी बच्चों की खातिर, माँ की यही कहानी थी..।।

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Nikhil Vijayvargiya

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