हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 मैं ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ था और निधन (16 august 2018) के वक्त उनकी उम्र 93 साल थी | अटल बिहारी वाजपेयी जी के पिता का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था। उनके पिता कृष्णा बिहारी वाजपेयी अपने गाव के महान कवी और एक स्कूलमास्टर थे। जिसके चलते अटल जी को कविता का गुण अपने पिता से मिला था | अटल बिहारी वाजपेयी जी राजनीति के साथ-साथ, कविताएँ लिखने में भी काफी रूचि थी, उन्होंने कई प्रकार की बेहतरीन रचनाएँ लिखी व एक कवी के रूप में भी काफी नाम कमाया था| आइये अटल जी के दवारा लिखी गयी कविता को पढ़ते है –
अटल बिहारी वाजपेयी अपनी कविताओ के बारे में कहते है कि,
“मेरी कविताएँ मतलब युद्ध की घोषणा करने जैसी है, जिसमे हारने का कोई डर न हो|
मेरी कविताओ में सैनिक को हार का डर नही बल्कि जीत की चाह होगी|
मेरी कविताओ में डर की आवाज नही बल्कि जीत की गूंज होगी||”
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता – अटल बिहारी वाजपेयी
Former Indian Prime Minister Atal Bihari Vajpayee 5 best poems
जो कल थे, वे आज नहीं हैं
जो कल थे,
वे आज नहीं हैं|
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे||
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा|
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा|| – atal bihari vajpayee
‘गीत नया गाता हूँ…’ पढ़ें अटल बिहारी वाजपेयी की 5 सबसे मशहूर कविताएं
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर,
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात,
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं,
गीत नया गाता हूँ||
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी,
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूँ|| -atal bihari vajpayee
आप मित्र बदल सकते हैं पर पडोसी नहीं – अटल बिहारी वाजपेयी
एक बरस बीत गया
एक बरस बीत गया
झुलासाता जेठ मास, शरद चांदनी उदास,
सिसकी भरते सावन का, अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया…
सीकचों मे सिमटा जग, किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक, गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया…
पथ निहारते नयन, गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा, मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया,एक बरस बीत गया|| -atal bihari vajpayee
जीवन की ढलने लगी सांझ
जीवन की ढलने लगी सांझ
उमर घट गई, डगर कट गई
जीवन की ढलने लगी सांझ||
बदले हैं अर्थ,शब्द हुए व्यर्थ
शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ|
सपनों में मीत,बिखरा संगीत
ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ,
जीवन की ढलने लगी सांझ|| -atal bihari vajpayee
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ|
आओ फिर से दिया जलाएँ…
हम पड़ाव को समझे मंज़िल, लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में, आने वाला कल न भुलाएँ|
आओ फिर से दिया जलाएँ..
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने, नव दधीचि हड्डियां गलाएँ|
आओ फिर से दिया जलाएँ, आओ फिर से दिया जलाएँ|| -atal bihari vajpayee
इतिहास में हुई भूल के लिए आज किसी से बदला लेने का समय नहीं है, लेकिन उस भूल को ठीक करने का सवाल है – अटल बिहारी वाजपेयी
ठन गई, मौत से ठन गई
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था|
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई|
मौत की उमर क्या है, दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं|
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ|
तू दबे पाँव चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा|
मौत से बेख़बर, ज़िंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई रात बंसी का स्वर|
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं|
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला|
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए|
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है|
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई|
ठन गई, मौत से ठन गई!! -atal bihari vajpayee
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4 Comments
Madeline
(August 23, 2018 - 2:30 am)I am truly glad to read this web site posts which includes plenty of valuable information,
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Nikhil Vijayvargiya
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Nikhil Vijayvargiya
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