काश ज़िंदगी एक किताब होती
काश जिंदगी सचमुच किताब होती
पढ़ सकता मैं कि आगे क्या होगा?
क्या पाऊँगा और क्या खोऊँगा,
कब थोड़ी खुशी मिलेगी और कब दुःख?
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
फाड़ सकता मैं उन लम्हों को,
जिन्होने मुझे तड़पाया और रुलाया है।
जोड़ता कुछ पन्नो को जिनकी यादों ने मुझे हँसाया है,
कितना खोया और कितना पाया है?
हिसाब तो लगा पाता,
काश जिदंगी सचमुच किताब होती।।
वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता,
टूटे सपनों को फिर से अरमानों में सजाता,
कुछ पल के लिये मैं भी मुस्कुराता,
काश, जिदंगी सचमुच किताब होती।।
शाम की तरह हम ढलते जा रहे है
शाम की तरह हम ढलते जा रहे है,
बिना किसी मंजिल के चलते जा रहे है।
लम्हे जो संभाल के रखे थे जीने के लिये ,
वो खर्च किये बिना ही पिघलते जा रहे है।
शाम की तरह हम ढलते जा रहे है।।
धुये की तरह बिखर गयी मेरी जिन्दगी हवाओ मैं,
बचे हुये लम्हे सिगरेट की तरह जलते जा रहे है।
जो मिल गया उसी का हाथ थाम लिया,
हम कपडो की तरह हमसफर बदलते जा रहे है।
शाम की तरह हम ढलते जा रहे है।।
सफर में धूप तो बहुत होगी
सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो,
भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।।
मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,
मुश्किल होगा सफर, लेकिन भरोसा है खुद पर तो चलो।।
हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,
तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।।
राह में साथ नहीं मिलेगा अकेले चल सको तो चलो,
जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।।
तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,
कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।।
जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,
गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।।
खुद पर हंसकर दूसरों को हंसा सको तो चलो,
दूसरों को बदलने की चाह छोड़ कर, खुद बदल सको तो चलो।।
सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो ।।
आज का मनुष्य सिर्फ लड़ रहा हैं
दूसरों से ही नही, बल्कि अपने आपसे में झगड़ रहा है,
मनुष्य अपने जीवन में सब कुछ पाने की कोशिश करता है,
पर अपने अंदर शांति को ढूँढने का प्रयास तक नही करता है,
आज का मनुष्य सिर्फ लड़ रहा हैं।।
मनुष्य बहुत उन्नति के बाद अपने आप पर अहंकार करने लगता हैं,
अहंकार के कारण, वह अपने सामने सबको कमज़ोर समझने लगता है,
मनुष्य को एक जलता हुआ दीया होना चाहिए
ताकि जब कोई बुझा हुआ दीया उसके पास आए तो वह उसको जला पाएँ
आज का मनुष्य सिर्फ लड़ रहा हैं।।
मनुष्य जब क्रोध करता हैं, तो वह अपना आपा खो देता हैं
पर समय नही है इस बहाने के कारण स्वंय तक को नही जान पाता है
आज का मनुष्य सिर्फ लड़ रहा हैं।।
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